Tuesday, June 18, 2019

मौत को गले लगाते बच्चे...

अनामिका अपनी दादी के साथ हैदराबाद में रहती थीं. वह एनसीसी की कैडेट भी थीं. वो रिपब्लिक डे परेड में शामिल होने के लिए चुने जाने का इंतज़ार कर रही थीं.
पापा मैं एक दिन आर्मी अफ़सर बनूंगी और आपका ख्याल करूंगी.
गुस्से से भरी उदया बताती हैं, "मेरी बहन की मौत की वजह इंटरमीडिएट बोर्ड है. वे ठीक से नंबर जोड़ना कैसे भूल सकते हैं. हम लोग बोर्ड के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराएंगे."
कुछ हफ़्ते पहले हमने उदया और उनके परिवार वालों से मुलाकात की थी, तब उदया इतने गुस्से में नहीं दिखी थीं. तब वो अपनी बहन की मौत के सच को स्वीकार करने की कोशिश में थीं. लेकिन अब वो ग़ुस्से से भरी और अपनी बहन की मौत के बदले इंसाफ़ मांग रही हैं. इंटरमीडिएट बोर्ड में फिर से जांच किए जाने के बाद अनामिका न केवल पास हुईं थीं बल्कि उन्हें पहले से 28 नंबर ज़्यादा हासिल हुए थे.

अनामिका की दादी उमा याद करती हैं, "जिस दिन पुलवामा अटैक हुआ था, उस दिन अनामिका पूरे दिन दिन टीवी के सामने बैठी रही, दरअसल वो रो रही थी. मैंने उससे पूछा कि क्यों रो रही हो तो उसने बताया था कि उसे हमले में शहीद हुए सैनिकों के परिवार वालों को लेकर उसे दुख महसूस हो रहा है."
अनामिका अपनी दादी के साथ हैदराबाद की एक संकरी सी गली में मौजूद दो कमरों वाले घर में पली-बढ़ी थीं. उमा अलमारियों के ऊपर रखी ट्रॉफ़ियां दिखाती हैं. ये अनामिका ने जीती थीं.
उमा बताती हैं, "अनामिका एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करती थी. वो कहा करती थी कि अम्माम्मा, केवल पढ़ाई मुझे कहीं नहीं ले जाएगी. जब मुझे पढ़ना होगा, मै पढ़ लूंगी. लेकिन उसने एक दिन भी कॉलेज मिस नहीं किया था. वो किचन के कामों में भी हाथ बंटाती थीं और रात में पढ़ाई करती थी."
एनसीसी यूनिफ़ॉर्म में अनामिका की तस्वीरें और अलमारी पर रखी तमाम ट्रॉफ़ियां सामने वाले तंग कमरे में पारिवारिक तस्वीरों के साथ नज़र आती हैं. हैदराबाद में होने वाले कई इवेंट्स में अनामिका बतौर एनसीसी वॉलंटियर हिस्सा लेती थीं.
अनामिका के माता-पिता शहर के आदिलाबाद इलाके में रहते हैं. उनके पिता गणेश आदिलाबाद में छोटा-मोटा बिजनेस करते हैं.
गणेश बताते हैं, "कोई जैसी बेटी मांग सकता है, उतनी ही बेस्ट बेटी थी अनामिका. मैं शारीरिक तौर पर विकलांग हूं. वह मुझसे कहा करती थी, पापा मैं आर्मी आफ़िसर बनकर आपकी देखभाल करूंगी. वह शैतानियां भी करती थीं, जब छुट्टियों में घर आती थी तो पूरे घर के लोगों को अपने उछल-कूद से चिंता में डाले रखती थी." 
ये सब बताते हुए गणेश मुस्कुराने की कोशिश करते हैं लेकिन इस कोशिश में उनका गला रुंधने लगते हैं.
उमा बताती हैं कि किस तरह से वो अपने पुराने स्कूल में बच्चों को फिजीकल ट्रेनिंग देने का काम करती थीं. उन्होंने बताया, "उसके टीचर उसे बहुत पसंद करते थे. वे लोग भी उसकी मौत के बाद आए थे. अनामिका अपने कॉलेज के बाद हर दूसरे दिन स्कूली बच्चों को थ्रो बॉल, कबड्डी और बास्केटबॉल की ट्रेनिंग देती थी."
उमा बताती हैं कि अनामिका उन्हें यंग लेडी कहा करती थीं. उमा याद करती हैं, "अनामिका जल्दी ही दिल्ली जाने वाले थी. एनसीसी कैडेट के तौर पर रिपब्लिक डे परेड में हिस्सा लेने के लिए उसे ज़रूरी ट्रेनिंग लेनी थी. उसे सेलेक्शन प्रोसेस के नतीजों का इंतज़ार था."
उमा अपनी पोती के बारे में बताती हैं, "वो काफी समझदार थीं. उसे चिकन फ्राइ बहुत पसंद था. लेकिन जब हमारे पास पैसे नहीं होते तब वो सब्जियां भी खा लेती थीं. शिन चेन और डोरेमोन उसके पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर थे और वो उनके आवाजों की नकल भी उतार लेती थी."
उमा कुछ साल पहले पड़ोस में हुए एक हादसे को भी याद करती हैं, "पड़ोस की एक बच्ची ने पिता के डांटने पर आत्महत्या कर ली थी. अनामिका को लगता था कि लड़की को ऐसा नहीं करना चाहिए था, वह भी केवल इस बात के लिए किसी ने उसे डांट दिया हो."
उस मनहूस दिन अनामिका की दादी के घर में कई मेहमान आए हुए थे. अनामिका गली में ही मौजूद अपनी चाची के घर गई थीं.
दादी उमा बताती हैं, "मुझे नहीं मालूम था कि उसके रिजल्ट आ गए. मुझे लगा कि यहां जगह कम है तो वो वहां सोने गई है. मैं शाम में उसे चाय पीने के लिए बुलाने गई, उसने कहा कुछ मिनट में आ रही हूं लेकिन वो नहीं आई."
नम आंखें लेकिन चेहरे पर मुस्कान के साथ वेंकटेश बताते हैं कि उन्होंने वेन्नेला को सिखाया था कि मोटरसाइकिल कैसे चलाई जाती है.
"मैंने उसे बेसिक बातें बताई थी और राइड के लिए ले गया था. एक सुबह, वो पापा की बाइक लेकर राइड के लिए निकल गई. मैं तब सो रहा था. उसने मुझे राइड के बारे में बताया, मुझे यकीन नहीं हुआ तो मैंने उसे फिर से राइड पर चलने को कहा, वो मुझे राइड पर ले गई."
"वह एकदम आराम से बाइक चला रही थी, ये देखकर मुझे बेहद खुशी हुई. हालांकि कई बार बिना उसे बताए, उसकी सुरक्षा के लिए मैं उसके पीछे-पीछे चलता था. वो हमारे गांव के खेतों में बने पतले रास्तों पर भी बाइक चला लेती थी. एक बार तो वो अपने दोस्त की शादी में बाइक से जाना चाहती थी, मैंने पापा से उसे अनुमति दिलवाई थी."

Monday, June 10, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

तेज़ गेंदबाज़ ट्रेंट बोल्ट श्रीलंकाई बल्लेबाज़ करुणारत्ने को गेंद फेंक रहे थे. करुणारत्ने ने गेंद के कोण से उलट कट करने की कोशिश की. गेंद अंदरूनी किनारा लेकर स्टम्प का स्पर्श लेते हुए निकल गई. रिप्ले में दिखा कि गिल्लियां सुस्ती में ज़रा सा हिलीं, फिर वापस अपनी जगह पर सेटल हो गईं.
मिचेल स्टार्क ने क्रिस गेल के ख़िलाफ़ विकेटकीपर के हाथों लपके जाने की अपील की, अंपायर ने ज़रूर कुछ सुना था, उन्होंने आउट दे दिया. लेकिन गेल ने तुरंत डीआरएस का इस्तेमाल कर फैसले को चुनौती दी.
रिव्यू से पता चला कि गेंद गेल का बल्ला नहीं, ऑफ़ स्टम्प को छूकर गई थी. गेल मुस्कुराए और एरोन फिंच को सिर पर हाथ रखे देखा गया.
इंग्लैंड के बेन स्टोक्स ने छोटी गेंद फेंकी, सैफ़ुद्दीन शॉट लगाने की कोशिश में अक्रॉस द लाइन चले गए. गेंद उनके शरीर से टकराई और स्टम्प से टकराकर लौट आई. लेकिन गिल्लियां नहीं गिरीं. 22 साल का यह नौजवान ऑलराउंडर भी भाग्यशाली निकला.
स्ट्राइक पर डेविड वॉर्नर थे. जसप्रीत बुमराह की गेंद पर्याप्त तेज़ी से स्टम्प पर लगी लेकिन गिल्लियों का एक बार फिर अपनी जड़ों से हिलने से इनकार. गुड लेंग्थ से कुछ छोटी गेंद थी, वॉर्नर ने रक्षात्मक तरीक़े से रोकने की कोशिश की थी लेकिन अंदरूनी किनारा लगा और गेंद लेग स्टम्प पर जा लगी.
''ईस्टर के दिन हमले के बाद हमारी बस्ती के ग़ैर मुसलमान लोग हमें आतंकवादी की तरह देखते हैं.''
एमएचएम अकबर ये कहते हुए श्रीलंका में ईस्टर के दिन हमले का ज़िक्र कर रहे हैं. इस हमले में 250 लोगों की मौत हो गई थी और इसका ज़िम्मेदार एक मुस्लिम कट्टरपंथी समूह को बताया गया.
दुनिया भर के मुसलमान रमज़ान के महीने में उपवास रखते हैं और प्रार्थना करते हैं लेकिन श्रीलंका में मुसलमानों के एक छोटे समूह ने ख़ुद को हिंसक समूहों से अलग दिखाने के लिए एक मस्जिद तोड़ दी.
अकबर ख़ान मदतुंगमा की मुख्
अकबर कहते हैं, ''इस हमले के बाद पुलिस मस्ज़िद पर अक्सर आया करती थी. इसे देखकर लोग परेशान होने लगे. इस हमले ने हमारे और दूसरे समुदाय के बीच विश्वास बेहद कम कर दिया. ''
कथित तौर पर इस मस्जिद का उपयोग प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन तौहीद ज़मात (NTJ) के सदस्यों द्वारा किया जाता था, समूह को पर अप्रैल में द्वीपीय देश पर आत्मघाती विस्फोट करने का संदेह था.
ईस्टर में हमले के बाद श्रीलंकाई सरकार ने पूरे देश में तौहीद ज़मात को टारगेट करते हुए कार्रवाई शुरू कर दी थी. इस संगठन की ओर से पूर्वी शहर कट्टनकुड़ी में एक मस्ज़िद चलाई जा रही थी जिसे सील कर लिया गया.
मदतुंगामा में ये मस्जिद ऐतिहासिक, धार्मिक या सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण नहीं थी. यह एक अलग अति-रूढ़िवादी समूह द्वारा संचालित की जा रही थी जिसका इस हमले से कोई ताल्लुक नहीं था.
इस क़दम से पता चलता है कि चरमपंथियों से छुटकारा पाने के लिए इस समुदाय के लोग किस हद तक जाने को तैयार हैं.
अकबर बताते हैं, ''हमारे इलाक़े में पहले से ही एक मस्ज़िद थी, जिसमें लोग नमाज़ अदा करते थे. लेकिन कुछ साल पहले कुछ लोगों के समूह ने इस मस्ज़िद को बनाया था.''
मई महीने में पुरानी मस्ज़िद के एक सदस्य ने एक बैठक बुलाई, जिसमें तय हुआ कि ये मस्ज़िद जो इस सारे विवाद की जड़ है उसे ख़त्म कर दिया जाए. स्थानीय लोगों ने हाथों में हथौड़ा लिए इस मस्ज़िद को तोड़ दिया.
वो कहते हैं, ''हमने इसकी मीनारें और नमाज़ अदा करने वाला कमरा तोड़ दिया और इस जगह को उनके हवाले कर दिया जो इसके असल हक़दार हैं.''
लगभग 70 फ़ीसदी श्रीलंका की आबादी बौद्ध धर्म मानती है और ये सभी लोग सिंहली भाषा बोलते हैं. 12 फ़ीसदी आबादी के साथ हिंदू देश में दूसरा सबसे बड़ा समुदाय हैं. इसके बाद 10 फ़ीसदी आबादी के बाद मुसलमान तीसरे नंबर और 7 फ़ीसदी आबादी के साथ ईसाई तीसरे नंबर पर आते हैं.
ज़्यादातर मुसलमान तमिल भाषा बोलते हैं लेकिन जटिल राजनीतिक और ऐतिहासिक कारणों के कारण, मुस्लिम ख़ुद को अन्य तमिल बोलने वालों से अलग जातीय समूह के रूप में मानते हैं.
ईश्वर का बसेरा
लेकिन इस क़दम को कई लोग सही नहीं मान रहे हैं. इस्लाम के धार्मिक मुद्दों पर मुख्य अथॉरिटी मानी जाने वाली संस्था सीलोन जमायतुल उलेमा का मानना है कि प्रार्थना की जगह को इस तरह तोड़ा नहीं जाना चाहिए.
अकबर बताते हैं, ''हमारे इलाक़े में पहले से ही एक मस्ज़िद थी, जिसमें लोग नमाज़ अदा करते थे. लेकिन कुछ साल पहले कुछ लोगों के समूह ने इस मस्ज़िद को बनाया था.''
मई महीने में पुरानी मस्ज़िद के एक सदस्य ने एक बैठक बुलाई, जिसमें तय हुआ कि ये मस्ज़िद जो इस सारे विवाद की जड़ है उसे ख़त्म कर दिया जाए. स्थानीय लोगों ने हाथों में हथौड़ा लिए इस मस्ज़िद को तोड़ दिया.
वो कहते हैं, ''हमने इसकी मीनारें और नमाज़ अदा करने वाला कमरा तोड़ दिया और इस जगह को उनके हवाले कर दिया जो इसके असल हक़दार हैं.''
लगभग 70 फ़ीसदी श्रीलंका की आबादी बौद्ध धर्म मानती है और ये सभी लोग सिंहली भाषा बोलते हैं. 12 फ़ीसदी आबादी के साथ हिंदू देश में दूसरा सबसे बड़ा समुदाय हैं. इसके बाद 10 फ़ीसदी आबादी के बाद मुसलमान तीसरे नंबर और 7 फ़ीसदी आबादी के साथ ईसाई तीसरे नंबर पर आते हैं.
ज़्यादातर मुसलमान तमिल भाषा बोलते हैं लेकिन जटिल राजनीतिक और ऐतिहासिक कारणों के कारण, मुस्लिम ख़ुद को अन्य तमिल बोलने वालों से अलग जातीय समूह के रूप में मानते हैं.
ईश्वर का बसेरा
लेकिन इस क़दम को कई लोग सही नहीं मान रहे हैं. इस्लाम के धार्मिक मुद्दों पर मुख्य अथॉरिटी मानी जाने वाली संस्था सीलोन जमायतुल उलेमा का मानना है कि प्रार्थना की जगह को इस तरह तोड़ा नहीं जाना चाहिए.
श्रीलंका की साउथ ईस्टर्न विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. ए. रमीज़ कहते हैं, "समुदाय उन्हें पुस्तकालयों या स्वास्थ्य केंद्रों जैसी जगहों में बदल सकता है. अगर हम मस्जिदों को नष्ट करने के रास्ते पर चले जाते हैं तो हमें सैकड़ों को नष्ट करने की ज़रूरत पड़ेगी.''
उनका अनुमान है कि सभी मस्जिदों में कम से कम 10 से 15 प्रतिशत कट्टरपंथी समूहों की ओर से चलाए जा रहे होंगे.
पिछले दो दशकों में वहाबी विचारधारा के विभिन्न क़िस्सों से प्रेरित होकर मुस्लिमों ने इसका अनुसरण किया है.
श्रीलंका के मुसलामनों ने सालों तक अपने ख़िलाफ़ लोगों के बर्ताव को देखा है, उन्हें संहेदास्पद के रूप में स्थापित किया गया.
अब तक क्या कर्रवाई
गर्मी में मुस्लिम महिलाएं अपना चेहरा नक़ाब से ढँकती हैं. श्रीलंका का मुस्लिम बाहुल क्षेत्र कट्टनकुडी में कई सड़कों और इमरातों पर अरबी भाषा में साइन बोर्ड लगे हैं. हालांकि देश में ज़्यादातर लोग अरबी पढ़ और समझ नहीं सकते.
लेकिन अब सरकार ने कड़ा रुख़ अपनाया है. हमले के बाद सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के चेहरा ढँकने से मना कर दिया गया है, साथ ही इस साइन बोर्ड पर लिखावट बदलने के आदेश दिए गए हैं. अब साइन बोर्ड पर औपचारिक भाषा-सिंहली, तमिल और अंग्रेजी में ही लिखा जाएगा.
श्रीलंका सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया है, लेकिन उनका कहना है कि हमले में सीधे तौर पर शामिल सभी लोग या तो मारे गए हैं या गिरफ्तारी की जा चुकी गई है. आपातकाल की ये स्थिति 22 जून को समाप्त होने वाली है. लेकिन यहां मुसलमानों को हर तरफ़ से दबाव महसूस हो रहा है.
डॉ. ए रमीज़ कहते हैं, "हम पर हमले और हमारे साथ दुर्व्यवहार की घटना आम होती जा रही है. हाल ही में मैं एक सहकर्मी से मिलने के लिए चार अन्य लोगों के साथ जेल गया था. जब हम बाहर आए तो एक व्यक्ति ने अचानक हमें गालियां देना शुरू कर दिया."
'वह कह रहा था तुम मुसलमान लोग अपनी कार में बम ले जा रहे हों, हमले ये देखकर जल्द वहां से निकलना उचित समझा.'
रमीज़ कहते हैं कि इस्लाम की दूसरे देशों से आई विचारधारा को सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक साधनों का उपयोग करते हुए उसके अनुसार ढालने की ज़रूरत है.
''ज़्यादातर लोग ऐसी कंट्टरवादी सोच नहीं रखते बल्कि वो पुलिस के साथ मिलकर अपधारियों को पकड़वाने में मदद करते हैं.''
मोहम्मद हिशाम एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो अब अपना अधिकांश समय लोगों को उग्र-कट्टरता से बाहर निकालने की कोशिशों में जुटे रहते हैं.
डॉ. ए रमीज़ कहते हैं, "हम पर हमले और हमारे साथ दुर्व्यवहार की घटना आम होती जा रही है. हाल ही में मैं एक सहकर्मी से मिलने के लिए चार अन्य लोगों के साथ जेल गया था. जब हम बाहर आए तो एक व्यक्ति ने अचानक हमें गालियां देना शुरू कर दिया."
'वह कह रहा था तुम मुसलमान लोग अपनी कार में बम ले जा रहे हों, हमले ये देखकर जल्द वहां से निकलना उचित समझा.'
रमीज़ कहते हैं कि इस्लाम की दूसरे देशों से आई विचारधारा को सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक साधनों का उपयोग करते हुए उसके अनुसार ढालने की ज़रूरत है.
''ज़्यादातर लोग ऐसी कंट्टरवादी सोच नहीं रखते बल्कि वो पुलिस के साथ मिलकर अपधारियों को पकड़वाने में मदद करते हैं.''
मोहम्मद हिशाम एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो अब अपना अधिकांश समय लोगों को उग्र-कट्टरता से बाहर निकालने की कोशिशों में जुटे रहते हैं.
क्या मस्ज़िद तोड़ कर मुस्लिम अपनी देशभक्ति साबित करना चाहते हैं?
चरमपंथियों के हमलों की क़ीमत यहां मुस्लिम समुदाय चुका रहा है. ये वो मुसलमान हैं जो हाशिए पर हैं और अब कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
मदातुंगमा की बात करें तो यहां कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अकबर खान कहते हैं, ''मस्जिद के विध्वंस के बाद हमारे प्रति दुश्मनी का रुख़ कम हुआ है. सिंहली और तमिलों ने पड़ोसी के रूप में हमारे साथ जुड़ना शुरू कर दिया है, इसने तनाव कम कर दिया है. ''
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य मस्ज़िद के ट्रस्टी हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि आख़िर क्यों अल्लाह में यक़ीन रखने वाले लोगों ये ऐसा क़दम उठाया.
संदेह की नज़र से देखते हैं लोग