Tuesday, September 25, 2018

विसंगतियों को दूर करने की पहल

ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में प्रदत्त प्रावधान के आलोक में सात साल या उससे कम सज़ा के दंडनीय अपराध में आरोपी को अनावश्यक ही गिरफ्तार नहीं करने संबंधी न्यायिक व्यवस्था के बावजूद अजा-अजजा (उत्पीड़न से रोकथाम) कानून के तहत शिकायत होने पर तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान बहाल करने का सरकार का निर्णय चर्चा में है। इस कानून में तत्काल गिरफ्तारी संबंधी प्रावधान को लचीला बनाने और जांच के बाद ही किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने संबंधी शीर्ष अदालत की व्यवस्था को निष्प्रभावी करके पहले की स्थिति बहाल करने के बाद से कई राज्यों में आन्दोलन चल रहा है।
इस बीच, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने भी अजा-अजजा कानून के तहत दर्ज प्राथमिकी निरस्त कराने के लिये दायर याचिका पर सरकार से दोटूक शब्दों में कह दिया कि शीर्ष अदालत की 2014 की व्यवस्था का पालन किया जाये। राज्य सरकार के वकील ने भी 2014 की व्यवस्था का पालन करने का आश्वासन दिया है।
च्च न्यायालय ने कहा है कि शीर्ष अदालत की व्यवस्था के आलोक में यदि अजा-अजजा कानून के तहत दर्ज शिकायत में लगे आरोपों के लिये सात साल तक की सज़ा हो सकती है तो सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकती। अजा-अजजा (उत्पीड़न से रोकथाम) संशोधन कानून की वैधानकिता पहले से ही न्यायिक समीक्षा के दायरे में है।
केन्द्र सरकार द्वारा आनन-फानन में संसद में इस कानून में संशोधन कर पूर्व स्थिति बहाल कराने की कवायद और इसके विरोध में चल रहे आंदोलन के बीच एक सवाल है कि व्यक्ति की गिरफ्तारी से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के प्रावधानों के संबंध में उच्चतम न्यायालय की चार साल पुरानी व्यवस्था के आलोक में क्या अजा-अजजा कानून के तहत शिकायत दर्ज होने पर पुलिस आरोपी को फटाफट गिरफ्तार कर सकती है?
संशोधित कानून में धारा 18-ए शामिल करके उत्पीड़न की शिकायत के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने या आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले मंजूरी लेने का निर्देश निष्प्रभावी बनाते हुए धारा 18 के प्रावधान बहाल किये गये हैं। कानून में शामिल धारा 18-ए के अनुसार प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच या जांच अधिकारी के लिए आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले, यदि जरूरी हो, मंजूरी लेना आवश्यक नहीं होगा। इसी तरह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 का प्रावधान भी इस कानून के तहत दर्ज मामले में लागू नहीं होगा।
न्यायमूर्ति चन्द्रमौली कुमार प्रसाद और न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष की पीठ ने दो जुलाई, 2014 को अपने फैसले में कहा था कि ऐसे सभी मामलों में जहां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के उपबंधों के तहत व्यक्ति को गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं है तो ऐसे मामले में पुलिस अधिकारी को आरोपी को एक निश्चित स्थान और समय पर हाजिर होने के लिए नोटिस देना होगा तथा आरोपी नियत समय पर उपस्थित होने के लिए बाध्य है।
न्यायालय ने निर्देश दिया था कि सात साल या उससे कम की सज़ा के दंडनीय अपराध के मामलों में पुलिस अधिकारी यांत्रिक तरीके से आरोपी को गिरफ्तार नहीं करे और पहले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में प्रदत्त पैमाने के तहत आरोपी की गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को आश्वस्त करे।
शीर्ष अदालत की यह व्यवस्था हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए और दहेज निरोधक कानून की धारा चार के तहत दर्ज मामले में दी थी लेकिन उसने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ये निर्देश ऐसे सभी मामलों में लागू होगा, जिनमें आरोपी को दंडनीय अपराध के लिए सात साल या उससे कम की कैद और जुर्माने की सज़ा हो सकती है।
न्यायालय ने इस फैसले की प्रति सभी राज्यों के मुख्य सचिवों, राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल के पास अमल के लिए भेजने का भी निर्देश दिया था।
दरअसल, अजा-अजजा कानून के तहत अधिकांश शिकायतों में आरोप साबित होने पर छह महीने से लेकर पांच साल तक की सज़ा हो सकती है, लेकिन कुछ ऐसे भी आरोप हैं, जिसमें आरोपी को मौत की सज़ा देने तक का भी प्रावधान है।
अजा-अजजा कानून के तहत दर्ज शिकायत के आधार पर आरोपी को तत्काल गिरफ्तार करने की आवश्यकता कहां है? एक सवाल यह भी है कि क्या अजा-अजजा कानून दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में प्रतिपादित मानदंड से बाहर है और यह प्रावधान अजा-अजजा कानून के तहत दर्ज शिकायतों के मामले में लागू नहीं होगा?
अजा-अजजा (उत्पीड़न की रोकथाम) कानून की धारा तीन में अत्याचार के अपराध के लिए सज़ा का प्रावधान है। इसमें कम से कम 15 ऐसे कृत्यों के उल्लेख हैं, जिनके लिए आरोपी को छह महीने से पांच साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है।

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